आपके घर में पूजा के दौरान अकसर आपने देखा होगा कि ब्राह्मण आपके पूजा स्थल में कुछ रंगोली सी बनाते हैं। क्या आप जानते हैं कि ये क्या होता है…? अगर नहीं तो आइये हम बताते हैं कि आखिर रंगोली की तरह बनाए जाने वाली इस प्रक्रिया का मतलब और उसका महत्व।
असल में किसी भी पूजा-अनुष्ठान का एक विधि-विधान होता है। पूजा की शुरुआत में ब्राह्रमण द्वारा बनाए जाने वाली रंगोली नुमा चीज असल में हमारे नवग्रहों का स्वरूप है। इसे ब्राह्मण अमूमन आटा-हल्दी-रोली से बनाते हैं। इसके बाद हम सभी नवग्रहों (सूर्य, चंद्रमा, मंगल,बुध, गुरू,शुक्र, शनि, राहु, केतु) का आह्वान कर इन्हें यथास्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं।
घर में किसी मंगल कार्य या मानसिक शांति के दौरान जब भी पूजा या अनुष्ठान किया जाता है तो उस दौरान इन नवग्रहों का आह्वान कर प्रतिष्ठित करना आवश्यक होता है। हमारे कर्मों के अनुसार जो भी फल हमें प्राप्त होते हैं वो इन्हीं ग्रहों की दिशा-दशा के अनुसार मिलता है। जब भी जातक की कुंडली में किसी भी प्रकार से कोई अनिष्ठ ग्रह या नीच ग्रह, शत्रुभाव में बैठा हो तो इनका पूजन जरूरी होता है। इस दौरान दान इत्यादि करने से ये शांत होते हैं और जातक को अच्छा फल प्रदान करते हैं।इन ग्रहों का आह्वान करने के बाद आसन, पाद्य, अर्घ, आचमन, वस्त्र, उपवस्त्र, जनेऊ, गंध, अक्षत, पत्र, पुष्प, धूप-दीए, मिष्ठान,तांबुल,दक्षिण इत्यादि से इनका पूजन किया जाता है। इस विधि-विधान से हमारे नवग्रह शांत रहते हैं और होने वाले किसी प्रकार के अनिष्ठ का प्रभाव कम कर देते हैं। वहीं अगर उच्च कुल में ग्रह हों तो जातक को प्रभावशाली फल प्रदान करते हैं।