19 साल से कर रहा था पागलपन का नाटक, सजा से बचाने वाले अनोखे नाटक का पर्दाफाश - World Media

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19 साल से कर रहा था पागलपन का नाटक, सजा से बचाने वाले अनोखे नाटक का पर्दाफाश

19 साल से कर रहा था पागलपन का नाटक, सजा से बचाने वाले अनोखे नाटक का पर्दाफाश

#Acting insanity for 19 years, exposes unique drama that saves from punishment

जबलपुर : मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में सजा से बचने के लिए एक युवक 19 साल से पागलपन का नाटक कर रहा था। कोर्ट ने हत्या के अपराध में आजीवन कारावास और छह लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है।

जबलपुर के पाटन थाना क्षेत्र में चुनाव के दौरान झंडा लगाने को लेकर हुए विवाद पर 19 साल पहले यानी 2004 में राइफल से गोली मारकर रवीन्द्र नामक युवक की दिनदहाड़े हत्या कर पागलपन का नाटक कर सजा से बच रहे आरोपी को आखिरकार अदालत ने सजा सुना दी। एडीजे विवेक कुकार की अदालत ने दूध का दूध और पानी का पानी करते हुए पाया कि आरोपी नंदू उर्फ घनश्याम पागलपन का नाटक कर रहा है, जिस पर अदालत ने उसे आजीवन कारावास और छह लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है।

उल्लेखनीय है कि आरोपी नन्दू उर्फ घनश्याम जिला जबलपुर अपने आप को पागलपन का अभिवाक कर मर्डर के आरोप में 19 साल से बच रहा था। साल 2004 में चुनाव के दौरन राजनीतिक दल में आस्था रखने वाले दो व्यक्तियों में झंडा लगाने को लेकर हुए विवाद में आरोपी नन्दू उर्फ घनश्याम ने राइफल से गोली मारकर रवीन्द्र की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी।

इसके लिए उसके खिलाफ धारा-302, 307 व ऑर्म्स एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज हुआ था, जिसके बाद आरोपी अपने आप को पागल करार देते हुए प्रकरण में कार्रवाई से वर्षों तक बचता रहा है। मामले में सुनवाई पश्चात् अदालत ने आरोपी को सजा से दंडित किया। मामले में शासन की ओर से विशेष लोक अभियोजक संदीप जैन ने पक्ष रखा। न्याय की अवधारण समाज में दोषी को दंड देने पर आधारित न्यायाधीश द्वारा अपने निर्णय में निष्कर्ष पाते हुए टिप्पणी की कि कोई व्यक्ति कानूनी रूप से विकृत चिन्ह है या नहीं उसे साबित करने का भार उस पर है।

मानसिक रूप से ग्रसित होने भर से उसे अपराध से दोषमुक्ति मिलना विधि सम्यक नहीं है। यदि ऐसा हो तो हर एक व्यक्ति मानसिक रोग का अभिभाक कर दोष के दायित्व से मुक्ति पा सकता है। अदालतों का ये पुनीत दायित्व है कि वे न्यायदान की प्रक्रिया में तथ्यों का विवेचन कर दूध का दूध पानी का पानी कर न्याय करे। न्याय की अवधारणा समाज में दोषी को दंड देने पर आधारित है। चाहे वह कितना ही प्रभुत्वशाली क्यों न हो।

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