पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन - World Media

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पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन


नई दिल्ली।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया। गुरुवार रात अचानक तबीयत बिगड़ गई थी। उन्हें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानके इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया था। मनमोहन सिंह के निधन पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, सांसद प्रियंका गांधी राहुल गांधी सहित देश के तमाम दिग्गज नेताओं ने दुख व्यक्त किया है। मनमोहन सिंह को देखने के लिए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान पहुंचे। कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता भी रात में ही अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान पहुंचे। इस बीच, कर्नाटक के बेलगावी में चल रही कांग्रेस वर्किंग कमेटी मीटिंग रद्द कर दी गई है। साथ ही 27 दिसंबर को होने वाले सभी प्रोग्राम भी कैंसिल कर दिए गए हैं।

26 सितंबर 1932 को जन्मे मनमोहन सिंह भारत के 13वें प्रधानमन्त्री थे। साथ ही साथ वे एक अर्थशास्त्री भी थे। लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री बने, जिनको पाँच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था। इन्हें 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक पी वी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मन्त्री के रूप में किए गए आर्थिक सुधारों के लिए भी श्रेय दिया जाता है।
 
मनमोहन सिंह को भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है। आम जनमानस में ये साल निश्चित रूप से डॉ॰ सिंह के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। डॉ॰ सिंह के परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर और तीन बेटियाँ हैं। मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित कीं। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा।[4] विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा।[4] मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद हो गए और उनकी आँखें फैल गईं। उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे और इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।

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